झांसी के पास सागर जिले मे रासायनिक अन्न से लड़ने के लिए उठ खड़ी हुई स्वाति
अड़तीस वर्षीय स्वाति सिंघई झांसी से 200 किलोमीटर दूर सागर जिले में झांसी की रानी की ही याद दिलाती हैं| मानो इस बार इस वीरांगना ने रसायनो के खिलाफ युद्ध की बिगुल बजाई हो| स्वाति एक मॉ, बेटी, पत्नी के साथ साथ अपने परिवार को रसायन-युक्त भोजन से बचाने के लिए स्वयं जैविक किसान बन कर बाकी लोगों के लिए एक रोल मॉडल भी हैं|
स्वाति छह साल इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) सेक्टर में जॉब करते हुए काफी बड़े शहरों जैसे कोलकाता, मुंबई, पुणे, दिल्ली नॉएडा में रह चुकी हैं| स्वाति को यहाँ का माहौल कभी पसंद नहीं आया परन्तु जॉब से बंधे होने के कारण उन्हें वहां अपने पति और एक छोटी सी बच्ची के साथ रहना पड़ा| स्वाति ने बड़े शहरों में रहने की समस्या जैसे भीड़ भाड़, खान पान और प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए कई बार विदेश में बसने का सोचा परन्तु देश का मोह उन्हें हमेशा बांधे रहा| परन्तु प्रदूषण एवं रासायनिक अन्न उन्हें हमेशा परेशान कर रहा था| फिर स्वाति की 15 महीने की बच्ची को जब नॉएडा में रहते हुए प्रदूषण से सांस के बीमारी होने लगी तब स्वाति ने तय किया की बस अब और नहीं| स्वाति ने आस पास देखा तो पाया लगभग हर व्यक्ति रासायनिक अन्न और प्रदूषण से ग्रस्त हैं|
बड़े शहरों में लोग बस पैसा तो कमा रहे हैं परन्तु अपने स्वास्थ्य को खराब करके
स्वाति ने निर्णय लिया की अब वह इस रासायनिक भोजन के जाल से अपने परिवार को स्वयं निकालेंगी और साथ साथ लोगों को भी स्वस्थ अन्न पहुंचाने का प्रयास करेंगी| उनके पति ने उनका साथ दिया और दोनों नॉएडा छोड़ कर छोटे से शहर सागर में आगये, जहाँ उनका जन्म हुआ था|
शुरुआती संघर्ष
स्वाति बताती हैं की उन्हें शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा जैविक कृषि के बारे में जान ने के लिए| मैनेजर की पोस्ट पर स्वाती हालाँकि खेती के बैकग्राउंड से सम्बन्ध रखती हैं परन्तु उन्होंने कभी भी खेती नहीं की थी| जब सब कुछ छोड़ कर स्वाति जैविक कृषि करने की मंशा से सागर आयी तो वह जैविक कृषि के ज्ञान से अनभिज्ञ थीं| सबसे बड़ा संघर्ष शुरू हुआ इस ज्ञान को सीखने में और समझने में| फिर स्वाति ने आकाश चौरसिआ के बारे में सुना तो वह आकाश से २ दिन की ट्रेनिंग के लिए उनके सेंटर पर गयीं और वहां जैविक के साथ साथ मल्टी लेयर फार्मिंग के भी गुण सीखे|
हालाँकि ज्ञान लेना अति आवश्यक है परन्तु उसको खेत में उतारना उससे भी ज्यादा आवश्यक है एक जैविक किसान के लिए
जब स्वाति प्राप्त किये हुए ज्ञान को खेती में उतारने निकलीं तो उन्हें सामान इकठ्ठा करने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा| स्वाति बताती हैं कि उन्हें सोसाइटी की तरफ से भी काफी तंज का सामना करना पड़ा क्यूंकि सोसाइटी के लिए यह नया कांसेप्ट था कि एक औरत खेती करे और वो भी अपने छोटे बच्चे को संभालने के साथ साथ और सबसे बड़ी बात जैविक खेती|
सोसाइटी को लगता है कि एक औरत जैविक किसान नहीं बन सकती
स्वाति के संघर्ष हालाँकि अभी ख़त्म नहीं हुए क्यूंकि उन्हें जयादा समय नहीं हुआ जैविक किसान बने परन्तु वे सब कुछ बखूबी एक अच्छे मैनेजर की तरह संभाल रहीं हैं|
खेत में मजदूरी करना और घर आकर अपने बच्चे को संभालना एक माँ ही कर सकती है
स्वाति को सबसे ज्यादा सपोर्ट मिला अपने पति और अपनी माँ का जिन्होंने स्वाति को समझा और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी|
स्वाति का सपना
स्वाति चाहती हैं कि वे अपने साथ साथ खेती में उन्हें मदद करने वाले व्यक्तियों की भी जिंदगी सुधार सकें और जैविक अन्न उपजा सकें| स्वाति अपने से जैविक कीटनाशक एवं जैविक खाद बनाती हैं और कोशिश करती हैं कि जैविक अन्न का दाम काम करके जन जन तक जैविक भोजन पहुंचा सकें|
यह स्वाती के पिताजी का सपना था कि स्वाति अपने गाँव और समाज की भलाई के लिए कुछ करें और स्वाति आज उनका सपना साकार करने में अग्रसर हैं
Bhut bhut badhaiyaa Swati