सस्टेनेबल जैविक कृषि करते हुए यह किसान बना एक कंपनी का मालिक
सीकर के पास मंडावरा गाँव में शेर सिंह जी अपने फार्म में जैविक खेती के लिए जाने जाते हैं| शेर सिंह जी ने सोलह (16) साल पहले (यानी 2004 में) जैविक कृषि की शुरुआत एक चौथाई एकड़ से की| और धीरे धीरे उन्होंने अपने 2 एकर के फार्म को गौ आधारित कृषि में बदल दिया| शेर सिंह जी आज एक क्लस्टर चला रहे हैं और अपने आस पास के लगभग 50 किसानो को प्रेरित एवं ट्रैन/शिक्षित करके गौ आधारित कृषि कर जैविक फसल उगवा रहे हैं|
शेर सिंह जी के अनुसार दृढ़ निश्चय से सारे काम सफल हो सकते हैं| उन्होंने अपने फार्म में लगभग हर किस्म के पेड़ लगाए हुए हैं जिससे जैव विविधता बनती है| OIS टीम को उनके फार्म पर सेब, लीची, अर्जुन, बादाम, चीकू, सीताफल, कटहल, पिस्ता, अंजीर, सहजन, आम, वटवृक्ष, कल्पवृक्ष, पपीता, नीम एवं कीकर इत्यादि के पेड़ दिखे|
दृढ़ निश्चय कर लो तो कुछ भी मुमकिन है| अगर सफल खेती करनी है तो कीट प्रबंधन, बीजोपचार, पोषण प्रबंधन इत्यादि खुद से करना होगा| और यह सब बहुत आसान है|
आज शेर सिंह जी अपनी एक कंपनी चला रहे हैं जिसका नाम है अन्नप्राश एडिबल प्राइवेट लिमिटेड और इस कंपनी के माध्यम से दूसरे किसानो को मार्किट से जोड़ने का काम भी कर रहे हैं|
गौ आधारित कृषि में किसान की इनपुट कॉस्ट कम हो जाती है और फसल अच्छी होती है| तो किसान को चाहिए कि जैविक अन्न को ज्यादा मूल्य पे ना बेच कर मार्किट रेट पर बेचे इससे एक तो खरीदार बढ़ेंगे और दूसरा उसका ज्यादा माल बिकेगा|
शुरुआती संघर्ष
शेर सिंह जी बताते हैं कि उन्होंने इस तरफ अपने कदम दृढ़ निश्चय और पारिवारिक विचारविमर्श करने के उपरांत ही बढाए क्यूंकि वे चाहते थे कि पारिवारिक सहयोग उनके साथ हो| परिवार से अनुमति मिलने के पश्चात उन्हें समस्या आयी तो उन्होंने सुभाष पालिकार जी के शिविर में जाकर जैविक कृषि के गुण सीखे| शेर सिंह जी ने एकदम से ही सारे खेत में शुरुआत नहीं की जैविक की अपितु पूरी प्लानिंग के साथ धीरे धीरे कर पुरे खेत को गौ आधारित कृषि में कन्वर्ट किया| सबसे पहले 1 बीघा से शुरुआत कर उन्होंने इस खेती को समझा तत्पश्चात हर दो साल में एक एक बीघा बढ़ा कर गौ आधारित कृषि को बढ़ाते गए|
पहले साल फसल थोड़ी कम थी पर दूसरे साल से ही फसल उतनी आने लगी जितनी रसायन से आती है| फिर तीसरे साल में पैदावार और बढ़ गयी|
सबसे अच्छी बात यह थी कि रसायन के मुकाबले इसमें खर्चा न के बराबर था और फसल भी पौष्टिक थी| देसी बीजो का प्रयोग कर फसल रोग रोधक हुई|
असली संघर्ष आया फसल बेचने में, क्यूंकि शेर सिंह जी के अनुसार उस वक्त लोग ज्यादा जागरूक नहीं थे जैविक अन्न के बारे में और मंडी में भी उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा था| ट्रेडर्स की मनमानी होती थी और भाव भी उनके हिसाब से लगता था| मंडी में कोई अलग प्लेटफार्म नहीं था जैविक अन्न के लिए जो की आज भी नहीं है|
जैविक सेमीनार में जाने से काफी लाभ हुआ उससे काफी लोग मिले और ग्रुप बना जिससे फसल की डिमांड पुरे भारत से आने लगी|
किसानो को प्रेरित किया
शेर सिंह जी ने जब अपने फार्म में रोल मॉडल खड़ा किया तो उससे काफी किसान प्रेरित हुए जिसके फलस्वरूप बहुत किसानो ने अपना मन बना कर शेर सिंह जी से ट्रेनिंग हासिल की और अपने खेतों में जैविक कृषि की शुरआत की| शेर सिंह जी ने आज एक नेटवर्क खड़ा कर दिया है जिसमे किसान किसी भी टेक्निकल ज्ञान के लिए शेर सिंह जी से सहायता प्राप्त कर सकता है|
जो किसान मार्किट में सामान बेचना चाहे वो मार्किट में बेचे और न बेच पाए तो शेर सिंह जी को बेच सकता है
शेर सिंह जी ने पौधों को त्यार करने के लिए एक अलग से नर्सरी का एरिया बनाया जो कि नेट और पॉली हाउस का कॉम्बिनेशन है| यहाँ पर पौधों को एक कंट्रोल्ड एनवायरनमेंट देकर उन्हें त्यार किया जाता है ताकि वे स्वस्थ रहे और उसके बाद उन्हें फार्म में बोया जाता है|
सस्टेनेबिलिटी की जीती जागती मिसाल (जल संरक्षण एवं बायो फ्रीजर)
शेर सिंह जी ने अपने फार्म में जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया है| उनके फार्म में बनी पक्की छतो से बरसात के पानी को संग्रह कर छोटी छोटी नालियों द्वारा एक कुंड में एकत्रित किया जाता है जो पीने में एवं सिंचाई में उपयोगी होता है| इससे उन्हें जल की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता जिससे उनके फार्म पर फसल हमेशा लहलहाती मिलती हैं|
साथ ही शेर सिंह जी ने एक स्वचलित बायो फ्रीजर (bio freezer) भी लगाया हुआ है जो की लगभग 20 डिग्री तक तापमान को कम कर सामान को सुरक्षित रख सकतें है| यह बायो फ्रीजर ईंट से बनाया हुआ ढांचा है जिसमे हवा पास होने के लिए स्ट्रक्चर दिया हुआ है और ऊपर से रोड़ियों से ढाका हुआ है| इन रोडियो पर ड्रिप द्वारा पानी छोड़ा जाता है| फ्रीजर के ऊपरी भाग पर गर्म हवा से बचने के लिए दूब घास उगाई हुई है|