हवन कृषि एवं गौ आधारित कृषि के गुण सीखा रहा है कोलीड़ा (सीकर) का यह किसान
जैविक यात्रा में OIS (Organic India Story) टीम पहुंची सीकर के पास एक छोटे से गाँव कोलीड़ा में जहाँ उनकी मुलाक़ात हुई ओम प्रकाश जी से जो कि किसान है और अपने खेत में गौ आधारित कृषि करते हैं| ओम प्रकाश जी लोकल KVK में आर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए बतौर ट्रेनर भी सेवा प्रदान करते हैं|
छह दशकों तक किसान रासायनिक खेती कर के पारम्परिक खेती भूल गया है और ओम प्रकाश जी जैसे लोग उनके सामने रोल मॉडल की तरह उभर कर सामने आरहे हैं |
ओम प्रकाश जी के अनुसार गौ आधारित कृषि (Cow Based Farming) प्राकर्तिक कृषि की श्रेणी में आती है जिसमे किसान को फसल प्रबंधन के लिए मार्किट से कुछ भी खरीदने की जरुरत नहीं है| क्यूंकि किसान सब कुछ अपने आप ही बना सकता है| किसान को कचरा प्रबंधन से लेकर पोषण प्रबंधन तक सब कुछ खुद ही करना है| तभी किसान की इनपुट कॉस्ट (input cost) कम होगी और वो ऋण मुक्त हो प्रॉफिटेबल खेती कर पायेगा |
किसान को चाहिए कि वो अपने खेत में कचरा प्रबंधन, फील्ड प्लानिंग, जल सँरक्षण, पोषण प्रबंधन, बीजोपचार, एवं कीट प्रबंधन पर ध्यान दे, जो की उसको गाय और खेत से ही मिल जाते हैं और मार्किट नहीं जाना पड़ता|
ओम प्रकाश जी ने अपने फील्ड की प्लानिंग में पूरा ध्यान दिया है| उनके आठ एकर खेत की शुरुआत में ही गौशाला बनी है जहाँ चार गायें और एक नंदी है| पुरे फील्ड के किनारे पर ऊँची उठी मुंडेरे हैं जहाँ तरह तरह के पेड़ लगे हैं जो मिटटी को बाँध कर रखते हैं और रिसाव नहीं होने देते| ओम प्रकाश जी के अनुसार खेत के किनारो पर ऊँची मुंढेरे अच्छे सूक्ष्म जीवाणु के बनने में भी मदद करते हैं | क्यूंकि मुंढेर की मट्टी को किसी भी तरीके से ट्रीट नहीं किया जाता और जब पेड़ और झाड़ पर तरह तरह के पक्षी आते हैं और बीट करते हैं तो मुंढेर की मट्टी स्वतः ही काफी लाभकारी हो जाती है | ओम जी इस मट्टी में आये जीवाणु का उपयोग कर अपने खेत का पोषण प्रबंधन एवं जीव रिचार्ज का काम करते हैं |
किसान अगर रासायनिक से जैविक पे आना चाहता है तो बस ये ध्यान दे कि जितनी मात्रा में वो रसायन से पोषण देता था उतनी ही मात्रा में वो जैविक से दे| तो उससे संघर्ष कम होता है|
शुरूआती संघर्ष
ओम प्रकाश जी लगभग सत्रह (17) सालों से रसायन मुक्त खेती कर रहे हैं एवं सीखा रहें हैं| ओम प्रकाश जी बताते हैं कि जब सत्रह साल पहले उन्होंने अखबार में पढ़ा कि रसायनो का प्रकोप इतना बढ़ गया है कि अब माँ के दूध में भी रसायन आ गया है तो उन्होंने ठाना कि अब वह अपने खेत में रसायनो का प्रयोग नहीं करेंगे| क्यूंकि ऐसी खेती से क्या फायदा है जो ना की अन्न खाने वाले की बल्कि किसान की भी सेहत एवं स्वास्थ ख़राब करे|
तो जब उन्होंने शुरुआत करी तो आस पास कोई जैविक या गौ आधारित खेती के बारे में सीखाने वाला नहीं था| फिर जगह जगह घूम कर एवं खुद के संघर्षो से ही जैविक खेती शुरू की| बिना सीखे करने से उन्हें अपने से काफी प्रयोग करने पड़े जिससे उत्पादन में कमी आयी| और धीरे धीरे जैविक खेती को करते हुए ओम प्रकाश जी ने गौ आधारित खेती को अपनाया|
सीख: चाहे रासायनिक खेती हो या फिर जैविक खेती, उसमे ऊपर से सामान डाल डाल कर किसान थक जायेगा और उसका खर्चा बहुत बढ़ जायेगा क्यूंकि दोनों ही सूरतों में सामान मार्किट से लेना पड़ेगा| जो ट्रेडर पहले रासायनिक खाद एवं कीट नाशक बेचता था अब वह जैविक भी बेचता है, तो किसान का खर्चा कम नहीं होता|
जबकि गौ आधारित खेती में आपकी जमीन ही सवयं खाद बनाना और अपने आप को ठीक करना चालू कर देती है, जिससे किसान को खर्चो में बहुत राहत मिलती है|
कचरा प्रबंधन
इसके लिए ओम प्रकाश जी ने अपने खेत में गड्ढा खुदवा कर एक टैंक बनाया जिसके नीचले भाग में एक पाइप लगाया और उससे कचरे का रस इकठ्ठा (एकत्रित) करते हैं जिसे वो ड्रिप के माधयम से पानी में मिलाकर खेत में देते हैं| इस टैंक में हरा कचरा जैसे गाजर घास और अन्य वीड को पीस कर डालते हैं और उसके ऊपर गौ गोबर का घोल डाल कर हर 3-4 दिन में पानी की सिंचाई कर देते हैं| इससे निकलने वाला पानी पौधो के लिए बहुत ही पौष्टिक होता है |
कीट नाशक एवं सूक्ष्म जीवाणु प्रबंधन
जैसे कि ओम प्रकाश जी ने बताया कि उन्होंने अपने खेत की बाउंड्री में मुंडेरे बनायीं हैं जहाँ तरह तरह के सूक्ष्म जीवाणु बनते हैं, तो ओम प्रकाश जी इस मुंडेर की मिटटी को लेकर हरी खाद का पानी एवं गुड़ के माध्यम से इन सूक्ष्म जीवाणु को बढ़ने का अवसर प्रदान करते हैं| इसमें गौ मूत्र का भी उपयोग किया जाता है| अब यह घोल कीट प्रबंधन हेतु छिड़काव के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है और मिटटी को पोषण एवं सूक्ष्म जीवाणु की मात्रा बढ़ने की लिए भी उपयोगी है|
कीट प्रबंधन के लिए इस घोल को पानी, छाछ, एवं गौ मूत्र के साथ छिड़काव किया जाता है और मिटटी में सूक्ष्म जीवाणु बढ़ाने के लिए इस घोल को पानी में मिलाकर ड्रिप के माध्यम से दिया जाता है|
प्रयोगशाला (हवन खेती)
ओम प्रकाश जी बताते हैं कि किसान को अपनी प्रयोगशाला बनानी चाहिए जहाँ पर वह नए तरीकों से पौधे विकसित करने पर प्रयोग कर सकता है एवं नए तरीकों से पोषण एवं कीट प्रबंधन के घोल बना सकता है| ओम प्रकाश जी ने अपनी इसी प्रयोगशाला में हवन कृषि (Hawan) के ऊपर भी अनुसंधान किया और पाया कि हवन खेती सही में कीटो को दूर और फसल को अच्छा कर सकती है| ओम प्रकाश जी कहते हैं:
कोई भी चीज़ अग्नि में आहुति देने से नष्ट नहीं होती बल्कि अग्नि उसे सूक्ष्म कणो में बदल कर हवा में फैला देती है यही वजह है कि हमारे पूर्वज हवन को श्रेष्ट मानते थे|
“मिसाल के तौर पर अगर मिर्च को अग्नि में स्वाहा करो तो वह सूक्ष्म कणो में बदलकर आसपास के लोगो को परेशान कर सकती है| बस ऐसे ही हवन खेती पौधों को पौष्टिकता प्रदान करने में लाभकारी होती है|”
बीज प्रबंधन
शुरुआती दौर में ओम प्रकाश जी को मुश्किल हुआ देसी बीजो को लेके आना और उन्हें इकठ्ठा करना परन्तु साल दर साल ओम प्रकाश जी ने बीज इकठ्ठा कर अपना एक बीज बैंक बनाया जिससे अब वह बीजो पर होने वाले खर्चे भी बचा रहे हैं|
किसान को अपना बीज बैंक त्यार करना चाहिए ताकि वह बीजों के लिए परेशान न हो और उसके द्वारा इकट्ठे किये हुए बीज अच्छी क़्वालिटी के हों| ऐसा कम्युनिटी बना कर भी किया जा सकता है|