मल्टी लेवल फार्मिंग गुरु आकाश चौरसिया के साथ साक्षात्कार
जैविक यात्रा के दौरान आकाश चौरसिया जी से मिलने हमारी टीम पहुंची सागर जो कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड जिले में स्तिथ एक छोटा एवं सुन्दर शहर है | आकाश चौरसिया जी अपनी मल्टी-लेवल फार्मिंग के लिए प्रसिद्ध हैं और दूसरे किसानो के लिए प्रेरणा स्रोत हैं | आकाश चौरसिया जी मल्टी-लेवल फार्मिंग का प्रशिक्षण भी करवाते हैं | आकाश प्राकर्तिक खेती एवं गौ आधारित खेती को उच्चतम मानते हैं एवं इसे करने की सलाह भी देते हैं | आकाश के बारे में और विस्तार से यहाँ जाना जा सकता है |
आकाश चौरसिया जी के साथ हमारी टीम का वार्तालाप :
TVS – आपको लगता है की सस्टेनेबल फार्मिंग एक काम करने वाला शब्द है या यह भी आर्गेनिक की तरह एक बज (buzz) वर्ड बन गया है|
आकाश – फार्मिंग तो पहले से ही सस्टेनेबिलिटी का प्रारूप है, हालाँकि आज के परिपेक्ष में हमने इसको परजीवी बना रखा है| फार्मिंग में कचरा प्रबंधन, जल प्रबंधन, जलवायु प्रबंधन, भूमि प्रबंधन आदि का विशेष महत्व है|
TVS – आपको क्या लगता है की ग्रीन रेवोलुशन की जरुरत क्यों पड़ी ? उससे पहले भी तो जैविक खेती, गौ आधारित खेती होती थी, तो क्या उसमें इतना प्रोडक्शन नहीं आ पा रहा था ?
आकाश – देखो हमारे पास उस समय काफी सारी चीजें गड़बड़ थी, 1960 का दशक तो हमने नहीं देखा है और हमें नहीं पता है उस समय क्या व्यवस्थाएं थी| मोटा मोटा जो समझ में आता है कि आज के दौर में हमारे पास कल्टीवेशन/उपजाऊ लैंड उस समय से ज्यादा है| अगर हम कुछ और दूसरी चीजों पर काम करते तो इसकी (ग्रीन रेवोलुशन) जरूरत नहीं पड़ती | मसलन अगर हम अपना कल्टीवेशन एरिया उस समय बढ़ा लेते, बिजली की समस्या का समाधान कर लेते, पानी की अप्रोच पे काम करलेते इत्यादि|
“हाँ यहाँ एक बात मैं विशेष रूप से स्पष्ट करना चाहूंगा कि जैविक या गौ आधारित खेती में प्रोडक्शन की दिक्कत नहीं है, अपितु यह किसान का खर्चा कम करके उसे प्रॉफिट में ले जाता है “

TVS – ग्रीन रेवोलुशन या जैविक खेती में भी हम सब प्रोडक्शन की बात करते हैं कि बढ़ा है या घटा है लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर एवं लोजिस्टिक्स की कोई बात नहीं करता है| किसान के पास प्रोडक्शन तो आ गया लेकिन टमाटर पड़े सड़ रहे हैं चाहे वह दिल्ली जाए या मुंबई की मार्केट में जाए क्योंकि बड़ी मंडी तो वहीँ पर ही मिलती है और रेट भी मिल जाते हैं | तो इंफ्रास्ट्रक्चर या लोजिस्टिक्स के ऊपर क्यों काम नहीं होता या फिर ये सस्टेनेबिलिटी मॉडल के बाहर हैं ?
आकाश – लोजिस्टिक्स सस्टेनेबिलिटी का पार्ट ही है, असलियत यह है कि जब तक हमारे पास फूड सिक्योरिटी नहीं होगी तब तक यह काम नहीं होगा और फूड सिक्योरिटी का मतलब यह है कि एक जिले की रिक्वायरमेंट कितनी है| एक जिले की रिक्वायरमेंट वेजिटेबल (सब्जी) की कितनी है, पल्सेस (दाल) की कितनी है, ऑयल (तेल) की कितनी है| तो उसका हमारे पास हिसाब होना चाहिए की चीजें इतने इतने वोल्यूम में हो कि हमारी रिक्वायरमेंट पूरी हो जाए| अभी हमारे पास क्या है कि कोई सिस्टम नहीं है चावल लगाया तो पता चला दूर-दूर तक सब चावल ही लगा रहे हैं| जब पैदा हुआ तब पता चला की इतना हो गया कि जिले में या प्रदेश में इतनी रिक्वायरमेंट ही नहीं है| तो अब यह खराब होना चालु हो जायेगा| यह सब अनसिस्टमैटिक वर्किंग है| एक जगह पता चला की प्याज दो रुपए किलो है पहली साल और दूसरी साल 400 रुपए किलो है तो यह सब चीजें काफी दिक्कत पैदा करती है| इसमें होता क्या है कि जब प्याज 400 रूपए किलो होता है तो किसान उस पर फॉक्स करता है क्योंकि किसान सोचता है कि उसमें ज्यादा इनकम है पर होता क्या है यह जो 400 रूपए हैं वह ट्रेडर को मिलते हैं इसमें से किसान के खाते में कुल रु 30 से रु 40 तक ही जाते हैं|
व्यापारी जो स्टॉक करते हैं या जो मिडिल मैन होते हैं वह इसमें मैक्सिमम पैसा कमाते हैं तो कुल मिलाकर हमें यह पता हो कि हमारी जिले की रिक्वायरमेंट क्या है और हमारे जिले में क्या-क्या होता है और उसकी रिक्वायरमेंट हम नंबर ऑफ पर्सन के हिसाब से करें, सस्टेनेबिलिटी एक झटके में हो जाएगी और उसके रेट भी मिलेंगे क्योंकि कोई चीज रु 400 जा रही है तो कोई चीज रु 40 जा रही है तो दोनों का बैलेंस हो जाएगा |
TVS – तो जैसे कि आपने कहा जिले की रिक्वायरमेंट का हिसाब हो, तो इसमें फार्मर प्लानिंग करें या फिर गवर्नमेंट का रोल होना चाहिए?
आकाश – गवर्नमेंट ही यह काम कर सकती है और तो कोई यह काम कर भी नहीं सकता | ऐसा करने से प्रदेशो में भी स्वतः ही सस्टेनेबल फार्मिंग एवं किसान उत्थान के मॉडल खड़े हो जायेंगे |
TVS – हम सब ऑर्गेनिक फार्मिंग की बात करते हैं, मार्केट को कैसे फिर एप्रोच किया जाए? आपने कहा की ट्रेडर पैसे कमाए जा रहा है और फार्मर को पैसा नहीं मिल रहा, तो फिर ऑर्गेनिक फार्मिंग करने के बाद भी यह क्या गारंटी है कि फार्मर को पैसा पूरा मिलेगा ?
आकाश – इसमें तो फिर यही है कि जब ऑर्गेनाइज्ड सिस्टम हो जाएगा तो गवर्नमेंट चाहे तो सब कुछ अच्छे से कर सकती है | जब उसने क्वांटिटी फिक्स कर दी हमारे जिले की रिक्वायरमेंट है तो वही सारी चीजों की भी फिक्स कर दे, दूध का यह रेट है टमाटर का यह रेट है तो फिर हर चीज ट्रैक पर आ जाएगी|
TVS – आज के दौर में जब गवर्नमेंट का हस्तक्षेप नहीं है तो फिर किसान जो भी प्रोडक्शन कर रहा है उसको मार्केट में कैसे रिप्रेजेंट करें मतलब उसका पैसे कैसे प्राप्त करें ?
आकाश – ढंग से पैसा लेने के लिए किसान को मार्केट में अपने आप को प्रजेंट करना होगा| अभी जो यह कम्युनिकेशन गैप है कि प्रोडक्ट कैसे बिकता है, अभी जो प्रेजेंट करता है या तो वह कंपनियां करती है या फिर ट्रेडर करते हैं तो किसान को खुद अपनी चीज को भी रिप्रेजेंट करना होगा| क्योंकि जब वह खुद रिप्रेजेंट करेगा तो फिर मीडियम कोई होगा ही नहीं बीच में तो फिर डायरेक्ट पैसा किसान के पास जाएगा| तो किसान को इसमें आगे आना पड़ेगा|
पर किसान इसमें आगे नहीं आएगा क्योंकि वह एक पुरानी मानसिकता को लेकर जिस ट्रक पर 50 साल से चल रहा है, वह उसे बदलना नहीं चाहते|
नई जेनरेशन को आगे आना होगा, उन किसानों के बच्चों को आगे आना होगा, एंटरप्रेन्योरशिप के आईडिया के साथ आना होगा और इसमें आगे बढ़कर काम करना होगा
TVS – तो अब ऐसा कोई प्लेटफॉर्म है जिस पर किसान आगे बढ़कर खुद को प्रजेंट कर सके?
आकाश – हां बिल्कुल है कई तरह की एजेंसी अभी काम कर रही हैं और कई तरह के लोग भी काम कर रहे हैं इस फील्ड में| पर दिक्कत यह है जब कोई मीडियम बीच में आता है तो उसे भी पैसे चाहिए क्योंकि उसे भी अपने आप को sustain करना है | तो फिर रेट उन चीजों के ऑटोमेटिक बढ़ जाते हैं| एक बात कही जाती है कि मार्केटिंग करने वाला मार्केटिंग कर सकता है पर प्रोडक्शन नहीं सकता, पर मैं मानता हूं कि किसान जो है वह दोनों चीजें कर सकता है क्योंकि किसान कोई ऐसी चीज नहीं बनाता है जिसमें कि कोई कॉन्पिटिशन हो, वह बेसिक नेसेसिटी की चीजें प्रोड्यूस करता है जिसे इंसान को daily चाहिए | इसमें कोई कंपटीशन नहीं होता जोकि मोबाइल प्रोडक्शन करने वाली कंपनियों के बीच में होता है उन्हें मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनानी पड़ती है|
किसान प्रोडक्शन और मार्केटिंग दोनों कर सकता है| उसे करना ही होगा |
TVS – आपने अपनी दूसरी वार्तालाप में कहा कि किसान को टूरिज्म में भी हाथ बटाना चाहिए, तो क्या आपको सही में लगता है की ऑर्गेनिक टूरिज़्म आगे बढ़ेगा मतलब आगे ऑर्गेनिक टूरिज़्म का स्कोप है?
आकाश – जिस तरह से दुनिया में तनाव बढ़ रहा है, तो तनाव को दूर करने के लिए कुछ तो माध्यम चाहिए| तनाव को दूर करने के लिए इंसान ने जिस चीज को छोड़ा था उस चीज को वापस आना होगा तभी वह सुखी रह सकता है| अगर उसे सुकून के साथ जीना है तो उसको नेचर के साथ तो जुड़ना ही होगा और वापिस नेचर को अपनाना होगा यही इसका समाधान है| आप एक मूवी देखते हो तो उससे तनाव तो दूर नहीं होने वाला वह मनोरंजन तो है पर उससे आपको कंपलीटली सुकून नहीं मिल सकता जो सुकून वाली बात होती है वह मूवी देखने से या गाने सुनने से नहीं हो सकता| एक टेंपरेरी मनोरंजन तो आपको मिल सकता है पर पूरा सुकून नहीं मिल सकता| तो इंसान को वापस नेचर से जुड़ना होगा |
अगर सुकून के साथ तनाव मुक्त जीना है तो लोगो को नेचर के साथ जुड़ना ही होगा और वापिस नेचर को अपनाना होगा|
आर्गेनिक टूरिज्म में फ्यूचर ब्राइट है इसमें कोई दोराय नहीं और इस तरह की चीजें लोगों पर अच्छा असर देंगी| हमें आने वाली जेनरेशन को समझाना है जो हमारे भारत की संस्कृति है, सभ्यता है|
जब हम दिल्ली गए थे केजरीवाल जी ने हमें बुलाया था, तो वहां के बच्चों से प्रश्न पूछा कि दूध कहां से आता है वह कहते हैं पैकेट से आता है |
तो मतलब उन्होंने इसके आगे-पीछे का कुछ देखा ही नहीं| जब हम इस तरह की चीजों में काम करेंगे ना केवल हम दुनिया का तनाव दूर कर पाएंगे बल्कि हम अपने आपको भी सुकून और शांति भरी जिंदगी देकर आने वाली नई जेनरेशन को कुछ नया देकर जाएंगे जो बेहद आवश्यक है|
TVS – जैसे कि जो बड़े शहर है जहां पर लोगो के पास जमीन नहीं है, दिल्ली हो या मुंबई वहां पर यह सस्टेनेबिलिटी फार्मिंग या ऑर्गेनिक फार्मिंग कैसे हो या वहां के लोग सस्टेनेबिलिटी के साथ कैसे जुड़ सकते हैं?
आकाश – उनके लिए जो भी जमीन है मतलब बालकोनी है टेरेस है जो भी है उस का लाभ उठा सकते हैं जिसमें कि उनका टेंपरेरी फायदा है| जैसे धनिया है जो कि न केवल सेहत के लिए बल्कि एनवायरनमेंट के लिए फ़ायदेमंद है| दूसरी बात लोग यह पूछते हैं कि हम इसमें क्या कंट्रीब्यूट करें तो मेरा मानना यह है कि किसी भी काम के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है तन की, मन की, धन की, तो जो लोग शहर में रह रहे हैं, भले उनका खेती से कोई संबंध नहीं है लेकिन अगर खेती में उनकी कोई रुचि है या फिर वह कुछ कंट्रीब्यूट करना चाहते हैं तो वह किसान की जाकर मदद कर सकते हैं| जैसे हम किसी को एडवाइस कर रहे हैं कि वह देसी गाय पाल ले| पर वह देसी मिल नहीं रही है अगर मिल रही है पता चला 40-50 हजार रूपए की है| पर किसान के पास रु 40,000 देने को है नहीं, तो फिर उस जगह पर वह चाहे तो कंट्रीब्यूट करें और किसान से अनुरोध करें कि हम रु 20,000 कंट्रीब्यूट कर रहे हैं बैंक में ना जाकर तुमको दे रहे हैं| देसी गाय अगर 4 लीटर दूध देगी, तो 1 लीटर दूध हमें दें बाकी 3 लीटर दूर आप रखें| तो हम इस तरह से फार्मर की मदद कर सकते हैं और मिशन में कंट्रीब्यूट कर पाएंगे और हम उसमें किसान की और इन्वेस्टर की मदद भी कर सकते हैं|